पर्यावरण के उद्देश्य को लेकर एक पेड़ मां के नाम पर वृक्षारोपण अभियान देशभर में चलाया गया। जिसके तहत देशभर में जमकर वृक्षारोपण किया गया, लेकिन तामिया में इसी अभियान के एकदम विपरीत आचरण अपना कर बरसों पुराने फलदार वनोपज देने वाले हरे भरे पेड़ों को काटने का अंतहीन सिलसिला तामिया में जारी है। उदाहरण के तौर पर तामिया सीएम. राइज स्कूल निर्माण में अनुमति की आड़ में आम वा फलदार महुआ के पेड़ काटे जा चुके है। इसी तरह आईटीआई कॉलेज
जो पाटन ग्राम में बन रहा है।उसमें भी वनोपज देने वाले महुए के पेड़ों की वली दे दी गई। ऐसा सिर्फ इसलिए हो सका कि पेड़ों पर नियंत्रण रखने वाले पटवारी तहसीलदार कोटवार जानते वूझते हुए भी इन पेड़ काटने वालों पर कार्रवाई नहीं कर सके। लेकिन इससे भी ज्यादा गंभीर मामला तामिया के भारिया ढाना मैं संग्रहालय निर्माण कार्य जिसमें पेड़ तो नहीं है, लेकिन ठेकेदार की निर्माण सामग्री ले जाने के लिए वाहन गुजरना है। उस रास्ते पर ठेकेदार ने आंगनबाड़ी हैंड पंप एवं कुएं के पास दो महुआ के पेड़ कटवा डाले, जिससे समझा जा सकता है कि ठेकेदार को स्थानीय प्रशासन का तनिक भी भय नहीं है।कि उन्होंने वनोंपज पर देने वाले महुआ के पेड़ को काटकर सिद्ध कर दिया कि तामिया में ठेकेदार प्रशासन पर पूरी तरह हावी है। उन्हें पटवारी तहसीलदार का संरक्षण प्राप्त है।
शायद इसी बलबूते अनावश्यक रूप से पेड़ नहीं काटा जा सकता था जबकि इस मार्ग पर इतनी जगह है कि इन महुआ के पेड़ों को बगैर काटे भी इनकी निर्माण सामग्री निर्माण स्थल तक पहुंच सकती थी लेकिन ठेकेदार ने वनोपज देने वाले महुआ के पेड़ काटना ज्यादा उचित समझा। इतना ही नहीं ठेकेदार का दुस्साहस देखिए की पेड़ को बैटरी के माध्यम से रहवासी क्षेत्र में आरी ब्लेड से काटकर वहीं पर पटक रखा है। इससे पता चलता है कि ठेकेदार को किसी का भय नहीं है। इस तरह संग्रहालय निर्माण स्थल ठेकेदार पर प्रकरण दर्ज कर पेड़ काटे जाने संबंधी कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि मोहल्ले वालों ने बतलाया कि ठेकेदार ने यह पेड़ कटवाए हैं। हम चाह कर भी कुछ नहीं कह पाए जबकि यह महुआ के पेड़ कुंटलो महुआ बनोपज के रूप में हम गरीबों को देते थे लेकिन उनके काटे जाने से पर्यावरण के साथ-साथ प्रतिवर्ष हमें आर्थिक हानि हमेशा उठानी पड़ेगी। इस तरह संग्रहालय निर्माण ठेकेदार ने एक पेड़ मां के नाम अभियान का खुला उल्लंघन कर अनावश्यक रूप से पेड़ काट डाले।
*संवाददाता शुभम सहारे छिंदवाड़ा*