अघोरी कौन होते हैं और शमशान में क्या करते हैं? जानें अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया के अनजाने पहलू……!!
साधु संत जो तंत्र साधना में लीन होते हैं,उन्हें अघोरी कहा जाता है।
ये अक्सर तंत्र क्रियाओं को अंजाम देने के लिए श्मशान के सन्नाटे में दिखाई दे जाते हैं।
अघोरी बनने की सबसे पहली शर्त है मन से घृणा को खत्म करना।
जिन चीजों से मनुष्य जाति घृणा करती है,उन्हें अघोरी अपनाते है।
अघोरी शब्द का संस्कृत में अर्थ ‘उजाले की ओर’ बताया गया है।
वहीं अघोर का मतलब अ+घोर, यानी जो घोर नहीं हो और सरल हो।
कहते हैं कि सरल बनना बड़ा ही कठिन होता है।
सरल बनने के लिए ही अघोरी कठिन रास्ता अपनाते हैं।
अघोरियों का स्वभाव बड़ा ही रूखा होता है।
ऊपर से भले ही यह आपको रूखे नजर आते हैं परंतु इनके मन में जनकल्याण की भावना निहित होती है।
हालांकि इनका स्वरूप वास्तव में डरावना होता है।
कहा जाता है यदि अघोरी किसी व्यक्ति पर प्रसन्न हो जाते हैं तो अपनी सिद्धि का शुभ फल देने में कभी पीछे नहीं हटते और अपनी तांत्रिक क्रियाओं का रहस्य भी उस व्यक्ति के सामने उजागर कर देते हैं।
यह जिन पर प्रसन्न हो जाते हैं उन्हें तंत्र किया सिखाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं,परंतु इनका गुस्सा अत्यंत खराब होता है।
मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को अघोर पंथ का प्रणेता माना जाता है.
कहा जाता है भगवान शिव ने ही अघोर पंथ की उत्पत्ति की थी.
वहीं भगवान शिव के अवतार भगवान दत्तात्रेय को अघोर शास्त्र का गुरु माना जाता है.
भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप से दत्तात्रेय ने अवतार लिया था.
अघोर संप्रदाय में बाबा कीनाराम की पूजा की जाती है.
इस संप्रदाय के अघोरी भगवान शिव के अनुयाई माने जाते हैं.
जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपनाता है।
लोग श्मशान, लाश, मुर्दे के मांस व कफन आदि से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपनाता है।
अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बनाती है जिसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाहता है,उसके भले के लिए अपनी विद्या का प्रयोग करता है।
अघोर विद्या सबसे कठिन लेकिन तत्काल फलित होने वाली विद्या है। साधना के पूर्व मोह-माया का त्याग जरूरी है।
मूलत: अघोरी उसे कहते हैं जिसके भीतर से अच्छे-बुरे, सुगंध-दुर्गंध, प्रेम-नफरत, ईर्ष्या-मोह जैसे सारे भाव मिट जाएं।
सभी तरह के वैराग्य को प्राप्त करने के लिए ये साधु श्मशान में कुछ दिन गुजारने के बाद पुन: हिमालय या जंगल में चले जाते हैं।
अघोरी वही बन सकता है, जो सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठ चुका है।
जहां एक आम व्यक्ति श्मशान से दूरी बनाए रखना चाहता है, वहीं अघोरी शमशान में ही वास करना पसंद करते हैं।
अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व माना गया है।
साथ ही यह भी माना गया है कि श्मशान में की गई साधना का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है।
मान्यता के अनुसार, श्मशान घाट में अघोरी 3 तरह से साधना करते पाए जाते हैं.
पहली श्मशान साधना, दूसरी शिव साधना और तीसरी शव साधना.
इस तरह की साधनाएं कामाख्या पीठ के श्मशान, तारापीठ के श्मशान, त्रंबकेश्वर और उज्जैन के चक्रतीर्थ के श्मशान में की जाती है।
मान्यताओं के अनुसार अघोरी जब शव के ऊपर पैर रखकर साधना करता है तो वह शिव और शव साधना कही जाती है.
इस साधना का मूल शिव की छाती पर माता पार्वती का पैर रखा हुआ माना जाता है.
इस साधना में प्रसाद के रूप में मुर्दे को मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है.
इसके अलावा तीसरी साधना श्मशान साधना मानी जाती है.
इस साधना में परिवार के लोगों को भी शामिल किया जा सकता है.
इस साधना के दौरान मुर्दे के स्थान पर शवपीठ की पूजा की जाती है.
इस जगह पर प्रसाद के रूप में मांस मदिरा के स्थान पर मावा अर्पित किया जाता है.
श्वेताश्वतरोपनिषद में भगवान शिव को अघोरनाथ कहा गया है.
अघोरी बाबा भी शिवजी के इस रूप की उपासना करते हैं.
बाबा भैरवनाथ भी अघोरियों के अराध्य हैं.
अघोरी अपने पास हमेशा नरमुंड यानी इंसानी खोपड़ी को रखते हैं, इसे ‘कापालिका’ कहा जाता है.
शिव के अनुयायी होने के कारण अघोरी नरमुंड रखते हैं और इसका प्रयोग वे अपने भोजन पात्र के रूप में करते हैं.
नर मुंड रखने के पीछे यह मान्यता है कि, एक बार शिवजी ने ब्रह्मा जी का सिर काट दिया था और उनके सिर को लेकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए थे.
अघोरियों के वेश में कोई ढोंगी आपको ठग सकता है लेकिन अघोरियों की पहचान यही है कि वे किसी से कुछ मांगते नहीं है और बड़ी बात यह कि तब ही संसार में दिखाई देते हैं जबकि श्मशान जा रहे हो या वहां से निकल रहे हों।
जय शिव शम्भु 🙏