आश्विन माह की के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है. यह दिन शरद ऋतु आने का संकेत देता है. शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्रमा की पूजा की जाती है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने गोपियों के संग रास रचाया था इसलिए इसे रास पूर्णिमा कहते हैं. इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करने के लिए आती है.
शरद पूर्णिमा की रात को पूजा के बाद खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है, आखिर इसके पीछे क्या वजह हैं?
हिंदू पंचांग के अनुसार, शरद पूर्णिमा तिथि की शुरुआत बुधवार, 16 अक्टूबर रात 8 बजकर 41 मिनट पर होगा और तिथि का समापन 17 अक्टूबर शाम 4 बजकर 53 मिनट पर होगा.
शरद पूर्णिमा का व्रत 16 अक्टूबर को रखा जाएगा. इस दिन चंद्रोदय शाम 5 बजकर 40 मिनट पर होगा.
शरद पूर्णिमा पूजा मुहूर्त
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय शाम 5 बजकर 5 मिनट पर होगा.
इस दिन पूजा कर चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने का शुभ मुहूर्त रात 8 बजकर 40 मिनट शुरु होगा।
शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है. जिसके प्रभाव से पृथ्वी पर अमृत वर्षा होती है.
चंद्रमा की रोशनी में कुछ ऐसे तत्व मौजूद होते हैं. जो हमार शरीर और मन को शुद्ध करके सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं. ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों से इस मिठाई में अमृत जैसे औषधीय गुण आ जाते हैं.
इस दिन दूध, चावल की खीर बनाकर, एक बर्तन में रखकर उसे जालीदार कपड़े से ढक्कर चांद की रोशनी में रखा जाता है. इसके बाद अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में श्री विष्णु को उस खीर का भोग लगा कर परिवारजनों में बांटकर सेवन किया जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी में खीर में चंद्रमा अपनी इन 16 कलाओं की बर्षा करता है जो इस प्रकार हैं. अमृत, मनदा (विचार), पुष्प (सौंदर्य), पुष्टि (स्वस्थता), तुष्टि( इच्छापूर्ति), ध्रुति (विद्या), शाशनी (तेज), चंद्रिका (शांति),
कांति (कीर्ति), ज्योत्सना (प्रकाश), श्री (धन), प्रीति (प्रेम), अंगदा (स्थायित्व), पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख )
शरद पूर्णिमा पूजा विधि-
शरद पूर्णिमा के दिन पूजा करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई कर लें. इसके बाद पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें
और भगवान विष्णु को भोग लगान के लिए खीर तैयार करके रख लें. उसके बाद एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें.
उसके बाद पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. फिर मंत्र जाप और आरती कर पूजा संपन्न करें.