*विजयराघवगढ़ में विराजित हैं विघ्न विनाशक, सांवले सलोने गणपति* रिपोर्टर: सुरेश सेन
देवताओं में सर्वप्रथम पूज्य देव ,भगवान श्री गणेश जी को माना गया है।भारतीय संस्कृति पुनर्जन्म एवम कर्म वैदिक सिद्धांतो पर आधारित है। इन्ही वैदिक परंपराओं के आधार पर देवताओं की पूजा पद्धति मानव जीवन के लिए जन्म से लेकर मोक्ष तक के सफर को आसान बनाती है।
यूं तो पूरे देश में भगवान श्री गणेश जी के अनेकों विघ्यात मंदिर वा प्रतिमाएं हैं।किंतु ऐतिहासिक नगर विजयराघवगढ़ में विराजित भगवान श्री गणेश जी की अद्भुत प्रतिमा सांवले सलोने गणपति के रूप में स्थापित है।
इस अद्भुत प्रतिमा की स्थापना मैहर रियासत से पृथक होने के समय १८२६ में राजा प्रयागदास जी ने अपने आराध्य विजय के प्रतीक भगवान श्री राघव जी के नाम पर रियासत का नाम विजयराघवगढ़ रखकर वैदिक पद्धति से नगर को सुंदर मन्दिरों से सुसज्जित किया था। एक सुंदर तालाब के किनारे श्री सीताराम बाग का निर्माण कराया था।
इसी तालाब में श्री गणेश ,वीर हनुमान,सूर्य रथ,भगवान शिव, माता सरस्वती की अद्भुत प्रतिमाएं स्थापित की थीं।
सांवले सलोने गणपति जी की यह प्रतिमा अपने आप में देश की पहली प्रतिमा है,जिसके मस्तक में शेष नाग की आकृति है, वैदिक मान्यता है कि भगवान श्री गणेश जी का यह स्वरूप तंत्र सिद्धांत की मान्यताओं पर आधारित स्वरूप है।
एक ही काले चिकने प्लेटिनम पत्थर पर अंकित छवि अनूठी है। वर्ष १९७१ में विजयराघवगढ़ में जब जगत गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती, एवम जगत गुरु शंकराचार्य करपात्री जी महराज ने इस गणेश प्रतिमा के दर्शन किए तब उन्होंने कहा था कि हमने विश्व भ्रमण किया है,किंतु ऐसी प्रतिमा हमने आज तक नहीं देखी ।
यह प्रतिमा ढाई मीटर ऊंची तथा दो मीटर चौड़े आकार के पत्थर में उत्कीर्ण है।
वर्ष १९९६ में ए सी सी कैमोर के प्रबंधक श्री नवीन चड्डा ने इस मन्दिर के चारों ओर एक लोहे के सैट का निर्माण कराके मन्दिर को सुरछा प्रदान की थी।
आज इस प्रतिमा के दर्शन करने हेतु दूर दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं।एवम अपनी मनोकामना भगवान श्री गणेश जी के दरबार में अर्जित करते है,इनके दर्शन मात्र से लोगो के सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं।
आज इस प्रतिमा को संरक्षित किए जाने की नितांत आवश्यकता महसूस की जा रही है।
सुरेश सेन की खास रिपोर्ट 9179760024