केंद्र और राज्य की सरकारें बढ़ती आबादी पर ब्रेक लगाने, कई कोशिशें कर रही हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी अपनी निष्क्रियता से इन अभियानों को अंजाम देने में नाकाम नजर आते हैं ।
कटनी जिले में रीठी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कथित तौर पर केवल चार घंटों में 128 महिलाओं का नसबंदी ऑपरेशन किया। हालाँकि, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी नसबंदी सेवाओं में मानक और गुणवत्ता आश्वासन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक शिविर में प्रति दिन केवल 30 नसबंदी ऑपरेशन ही किए जा सकते हैं।
जानकारी के मुताबिक नसबंदी की आदर्श प्रक्रिया तो यह है कि नसबंदी करवाने वाली महिला को सबसे पहले महिला को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया जाता है जहां उसे एनस्थीसिया दिया जाता है. नसबंदी की प्रक्रिया में इन्फ़ेक्शन का डर सबसे ज़्यादा रहता है. इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि सभी मेडिकल औज़ार साफ़-सुथरे होने चाहिए.
आजकल दूरबीन से ही ये प्रक्रिया की जाती है, यूं तो इस प्रक्रिया में केवल बीस मिनट ही लगते हैं लेकिन जानकर सूत्र के अनुसार संक्रमण का ख़तरा काफ़ी रहता है.
रीठी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बुधवार को महज़ चार घंटों में 128 से ज़्यादा ऑपरेशन किए गए. एक्सपर्ट के मुताबिक नसबंदी करने में समय भले ही कम लगता हो, लेकिन ये बेहद मुश्किल प्रक्रिया है. गांवों में अक्सर होता यह है कि मेडिकल औज़ारों को जीवाणु मुक्त नहीं किया जाता.
विगत दिनों कटनी जिले में ऐसे कई हादसे हो चुके हैं जिसमें नसबंदी के बाद कई महिलाओं की मौत हुई है.
स्वास्थ्य अधिकारी ऐसे शिविरों में एक लक्ष्य तय कर लेते हैं और उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वे ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को शिविरों तक ले आते हैं । हालांकि उन महिलाओं को इस प्रक्रिया के ख़तरों के बारे में ठीक से अवगत नहीं करवाया जाता, साथ ही नसबंदी के बाद लेने वाले उपायों के बारे में भी उन्हें नहीं बताया जाता.
बताया जाता हैं कि गांवों में ‘आशा’ स्वास्थ्य कर्मचारियों को ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को नसबंदी के लिए राज़ी करवाने के लिए पैसे दिए जाते हैं.l पैसे के लालच के चक्कर में ये महिलाएं और स्वास्थ्य कर्मचारी, दोनों बिना पूरी जानकारी हासिल किए इन शिविरों में चली जाती हैं.
कटनी जिले में लगाए जा रहे नसबंदी शिविरों में जमकर लापरवाही बरती जा रही है। नसबंदी के बाद महिलाएं अस्पताल के बाहर घर से लाए गए कंबल में लिपटकर घंटों तक पड़ी रही। इसके वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। जिसे लेकर जिले के समाज सेवी भी स्वास्थ्य विभाग पर लापरवाही के आरोप लगा रहे हैं
इस शिविर में सुबह 10 बजे से रजिस्ट्रेशन शुरू होता है. हालांकि रजिस्ट्रेशन होने के बाद घंटों तक महिलाओं को डॉक्टर के इंतजार में भटकना पड़ता है, इससे महिलाओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. महिला के साथ आए परिवार के लोगों को बच्चों को संभालने के लिए पूरे अस्पताल में भटकना पड़ता है. अस्पताल में बच्चों के लिए कोई झूला या समुचित व्यवस्था नहीं होने से परिजन को काफी दिक्कत होती है
मौके पर आई महिलाओं के परिजनों ने बताया की आशा और उषा कार्यकर्ता सुबह से ही गांव-गांव से अपना टारगेट पूरा करने के लिए महिलाओं को अस्पताल में लेकर पहुंचती हैं, लेकिन नसबंदी कराने आई और महिलाओं के बच्चों तथा परिजनों को सुविधाओं के अभाव के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
इस समस्या को दूर करने को लेकर अस्प्ताल प्रबंधन को कोई परवाह नहीं नसबंदी के लिए आई महिलाओं के लिए अस्पताल प्रबंधन न तो पानी की व्यवस्था करता है और ना ही जलपान या भोजन की व्यवस्था करता है. डॉक्टरों के लेटलतीफी के कारण परिजनों और नसबंदी के लिए आई महिलाओं को घंटों भूखे रहना पड़ता है.। कड़कड़ती ठंड मैं कोई शामियाना टेंट की व्यवस्था तक नहीं की गई। नाही उनके बैठने की लिए दरी बिछाई की व्यवस्था की गई।
रात 8 बजे के बाद सर्जन ने इन महिलाओं के एलटीटी ऑपरेशन किए। जो देर रात बारह बजे तक चलते रहे.।
नसबंदी ऑपरेशन में गंभीर लापरवाही देखी गयी. जानलेवा खतरों के बीच महिलाओं को आपरेशन के बाद गोद में उठाकर परिजन स्वयम बेड तक और आशा कार्यकर्ताओं को घर जाने की जल्दी में नसबंदी ऑपरेशन के बाद गोद में उठाकर व पैदल ही वाहन तक असुरक्षित तरीके से लेकर जाते रहे, दर्द से कराहतीं महिलाएं, कभी हाथ से छिटकने का भय तो कभी नियंत्रण खोने का डर, हाफते-कांपते परिजन अस्पताल प्रबंधन और सरकार की अव्यवस्था को कोसते रहे।
बता दें कि इसी लापरवाही के चलते 5 दिसंबर 2021 को बिलहरी स्वास्थ्य केंद्र में नसबंदी कैंप के दौरान इंजेक्शन लगाने के बाद सिया बाई पति शिवकुमार चौरसिया की मौत हो गई थी. इसमें स्वास्थ्य विभाग की गंभीर बेपरवाही सामने आई है।
कार्रवाई के नाम पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा रीठी बीएमओ डॉ. सुनील पराशर को रीठी से हटाकर सिर्फ ढीमरखेड़ा किया गया था और दोषियों पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी. इस घटना के बाद भी व्यवस्थाएं नहीं सुधर रहीं।
हरिशंकर बेन