महाभारत युग की आंवरी घाट पर कई धरोहर मौजूद, शासन प्रशासन की अनदेखी धरोहर हो रही लिप्त।
रिपोर्टर सीमा कैथवास
नर्मदापुरम ( होशंगाबाद) जिला धरोहर और पौराणिक एवं सुन्दरता में पीछे नहीं हैं। यहाँ अनेक दर्शनीय स्थल हैं । जिले का सबसे प्रसिद्ध एवं सुंदर स्थल नर्मदा का तट है। ऐसा ही एक स्थान नर्मदापुरम जिले के सिवनीमालवा तहसील के अंतर्गत आने ग्राम पंचायत हथनापुर के आंवरी घाट है। जहाँ महाभारत काल की कई धरोहर मौजूद हैं। जब पांडवों को 14 बर्षो का अज्ञातवास मिला था। इस दौरान 12 बर्षो तक माता कुंती सहित पांडवों ने आंवरी घाट पर तपस्या की थीं।
तपस्या के दौरान पांडवों को मां नर्मदा ने दर्शन दिए थे और पूछा था की आपकी क्या मनोकामना है तो अर्जुन ने कहा की कौरवों से हमारा युद्ध होना है उसमें हमारी विजय हो। मां नर्मदा ने भीम से पूछा कि तुम्हारी क्या मनोकामना है तो भीम ने कहा कि मुझे आपसे विवाह करना है तो मां नर्मदा ने कहा कि अगर तुम मेरी जल धारा रोख दोगे तो मैं तुमसे विवाह कर लूंगी।
सुनते ही भीम ने जल प्रवाह रोकने के लिए पर्वतों की श्रृंखलाओं को जमा कर कावड़ में पत्थर लाकर डाले। इस कार्य में भीम की माता कुंती ने भी भीम की सहायता की। उस समय नर्मदा ने विचार किया कि कहीं सुबह होने से पहले जलधारा रूक न जाए। तभी उन्होंने मुर्गा बनकर बांग दे दी। आवाज सुनते ही भीम और माता कुंती ने कावड़ पटक दी ओर वह पराजित हो गए। आंवली घाट में आज भी वह पत्थरों की चट्टानें वहीं जमी हुई हैं।
भगवान श्रीकृष्ण और रुकमणी जी नर्मदा मैया और पांडवों से मिलने आए थे । वहीं माता लक्ष्मी अपने रथ में सवार होकर कुंती से मिलने आई थी ,माता लक्ष्मी ने कुंती को आबाज लगाई किन्तु कुंती साधना में लीन थीं । जिससे माँ लक्ष्मी नाराज होकर रथ सहित हत्याहरणी नदी के कुंड में समा गई । इस तरह महाभारत काल की आंवरी घाट पर कई धरोहर आज है । धरोहर में लक्ष्मी जी के रथ के निशान लक्ष्मीकुंड, बृ्रम्हपास भावनाथ बाबा की टेकरी पर भीम के के गिल्ली डंडा कुंती कुंड भीम लेता हुआ ऐसे कई धरोहर आज भी है । दर्शनीय स्थल और पौराणिक महत्व के स्थान हैं। महाभारत युग में पांडवों की तपस्या स्थली तथा वनवास के समय उनका यहां निवास स्थान था। यहॉ से एक किलोमीटर पूर्व में कुंतीपुर नगर एवं हस्तिनापुर नगर जो कि वर्तमान में कुंतिपुर कूल्हड़ा ओर हस्तिनापुर हथनापुर के नाम से प्रसिद्व हैं। यहां के बारे में अनेक किवदन्तियां हैं। लक्ष्मी कुण्ड पर रूख्मणीजी नर्मदाजी से मिलने गई थी।
महाभारत काल की इन धरोहरों पर अभी तक शासन-प्रशासन की नजर नहीं पड़ी है जिससे यह धरोहर धीरे कर लुप्त होते जा रहे हैं क्षेत्र के लोगों ने जनप्रतिनिधि एवं शासन प्रशासन से अपेक्षा की है की इन धरोहरों का पर कायाकल्प किया जाए जाए जिससे यह धरोहर सुरक्षित रहे और आंवरी घाट विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बन सके । नर्मदा और हत्याहरणी नदी के संगम में स्नान करने मात्र से दुष्प्रवृत्तियों का नाश होकर प्राणी मात्र में सत्कर्मो के प्रति प्रवृत्ति होने की प्रेरणा प्राप्त होती हैं।
आंवली घाट का, धार्मिक पर्वों पर और अधिक महत्व बढ़ जाता हैं। यहां पर हत्याहरणी हथेड नदी एवं नर्मदा का संगम स्थल हैं, इस कारण इसका महत्व अधिक हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां वर्ष में दो बार प्रथम गंगा दशमी एवं आंवला नवमीं पर प्रति वर्ष भीम नर्मदा नदी में स्नान करने आते हैं। इन दो तिथियों में भीम प्रात: चार बजे स्नान कर वापस चले जाते हैं। यहां नदी के पास रज रेत में भीम के पैरों के निशान जो कि करीब 20 इंच लंबे होते हैं, जो इन तिथियों के आसपास ही देखने को मिलते हैं। कुछ भक्त इन पैरों के निशान की पूजा भी करते हैं। कुछ समय पश्चात इन पैरों के निशानों का रेत मे पता ही नहीं चलता।