रिपोर्टर सीमा कैथवास
नर्मदापुरम । केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी टाइगर रिजर्व के प्रभावी प्रबंधन एवं मूल्यांकन की लेटेस्ट रिपोर्ट में देश के टॉप फाईव टाइगर रिजर्व में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को द्वितीय एवं मध्यप्रदेश को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है। वन मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह ने सतपुड़ा टाइगर रिजर्व प्रबंधन से जुडे अधिकारी- कर्मचारियों को बधाई और शुभकामनाएँ दी है।
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व की विशेषताएँ –
नर्मदापुरम जिले में स्थित सतपुड़ा टाइगर रिजर्व 2130 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह डेक्कन बायो-जियोग्राफिक क्षेत्र का हिस्सा है। अभूतपूर्व प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह देश की प्राचीनतम वन संपदा है, जो बड़ी मेहनत से संजोकर रखी गई है। हिमालय के क्षेत्र में पाई जाने वाली वनस्पतियों की कुछ प्रजातियाँ और दक्षिण के वनों में पाई जाने वाली कुछ प्रजातियाँ, सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व के वन क्षेत्र में भी भरपूर पाई जाती है। कुछ प्रजातियाँ जैसे कीटभक्षी घटपर्णी, बाँस, हिसालू, दारूहल्दी सतपुड़ा और हिमालय दोनों जगह मिलती हैं। सतपुड़ा की पहाड़ी श्रंखला में 1500 से 10 हजार वर्ष पुराने 50 शैलाश्रय हैं। प्राकृतिक महत्व के साथ इनका पुरातात्विक महत्व भी है। इस प्रकार सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को देश के मध्य क्षेत्र के इकोसिस्टम की आत्मा कहा जाना उचित होगा। यहाँ अकाई वट, जंगली चमेली जैसी वनस्पतियाँ भी हैं, जो अन्यत्र नहीं या बहुत कम पाई जाती हैं। वनस्पतियों के अतिरिक्त 14 ऐसे वन्य-जीव हैं जिनका जीवन आज खतरे में हैं, फिर भी यहाँ उनका रहवास बना हुआ है जैसे उड़न गिलहरी। बाघों की उपस्थिति और उनके प्रजनन क्षेत्र के रूप में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व प्रसिद्ध है। यह रिजर्व बाघों की अच्छी उपस्थिति वाले मध्यभारत के क्षेत्रों में से एक है। संरक्षित क्षेत्रों के आंतरिक प्रबंधन में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व अपने आप में देश का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। देश के बाघों की संख्या का 17 प्रतिशत और बाघ रहवास का 12 प्रतिशत क्षेत्र सतपुड़ा में आता है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व एक प्रकार से हिमालय और पश्चिमी घाट के बीच वन्य-जीव की उपस्थिति का सेतु बनाता है। यह मालाबार व्हिसलिंग थ्रश अर्थात कस्तूरा पक्षी, दूधराज, मालाबार पाइड हार्नबिल अर्थात धनेश पक्षी के लिये भी आदर्श रहवास है।