सिहोरा नगरी क्षेत्र में इन दिनों धड़ाधड़ नई कालोनियों का निर्माण किया जा रहा है इन कालोनियों को बनाने में कॉलोनाइजर बेझिझक तालाबों एवं खेतों को मुरूम से पूर्व कर बड़े-बड़े भवन खड़े कर रहे हैं जिसके चलते क्षेत्र में लगातार जलस्तर में गिरावट देखी जा रही है वही गिरते जल स्तर का प्रमुख उदाहरण सिहोरा नगर की जीवनदायिनी हिरण नदी की धार में भी पतलापन स्पष्ट दिखाई देने लगा है।
एक जानकारी के मुताबिक सिहोरा नगरी क्षेत्र में लगभग एक दर्जन के करीब तालाब थे जिनमें से तीन मुख्य तालाब लगभग समाप्ति की ओर हैं जिनमें मटहा तालाब,बाबाताल तालाब और भदोहाँ तालाब हैं। इन तालाबों के आजू-बाजू लगातार भवन निर्माण हो रहा है भवन निर्माता इन तालाबों को मिट्टी और मुरूम डालकर उड़ रहे हैं एवं अपने भवन निर्माण कर रहे हैं लेकिन ना तो इस और नगर पालिका प्रशासन का कोई ध्यान है और ना ही राजस्व विभाग किसी तरह की कोई कार्यवाही कर रहा है जिसके चलते कॉलोनाइजरों से मिलकर भवन निर्माण का धड़ाधड़ भवनों का निर्माण करने में लगे हुए हैं। वही भवन निर्माताओं द्वारा अपने भवन निर्माण भूमि के आसपास कुआं को भी पूरने से परहेज नहीं कर रहे जिसके कारण फरवरी माह में ही भूमि जल स्तर में गिरावट देखी जा रही है।
*तालाबों को पूरकर खड़ी कर दी कॉलोनी दूसरे तालाब में तैयारी तेज,
सिहोरा नगर पालिका क्षेत्र में वैसे तो आबादी क्षेत्र की भूमि बहुत ही सीमित रह गई है जिसके चलते लोगों को अपने अपने भवन निर्माण के लिए भूमि की आवश्यकता है ऐसे में कॉलोनाइजरों द्वारा शहर के तालाबों को भी पूरकर कॉलोनी खड़ी कर रहे हैं। मामला वार्ड नंबर 7 गढ़िया पूरा क्षेत्र का है जहां वर्ष 2019 में लगभग सवा 2 एकड़ के तालाब को पूर्व दिया गया और उस पर कॉलोनी खड़ी कर दी गई जिसमें लगातार लोगों को प्लाट बेच कर प्रशासन को लाखों रुपए की राजस्व हानि भी उठाना पड़ी बावजूद इसके अब तक राजस्व एवं नगर पालिका प्रशासन आंख पर पट्टी बांधे तमाशा देख रहा है और वहां लोग बिना अनुमति भवन निर्माण करने में लगे हुए हैं वही दूसरा मामला वार्ड नंबर 9 राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर सैयद बाबा की टोरिया से लगे हुए एक तालाब का सामने आया है जहां लगभग 5 एकड़ के इस तालाब को मुरुम डालकर पूर दिया गया है एवं इस पर लोगों को प्लाट बनाकर बेचे जा रहे हैं।
*वाटर हार्वेस्टिंग के नहीं हो रहे प्रयास,
नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्र में भूजल स्तर तेजी से नीचे गिर रहा है वर्तमान में स्थिति यह हो गई है की गर्मी के मौसम मे ग्रामीण क्षेत्र में उन इलाकों में भी ट्यूबवेल बंद हो जाते हैं।।जहां पर साल भर भरपूर पानी मिला करता था ज्ञात हो की राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2011 में नए भवनों के निर्माण में वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य कर दिया गया था। इसके बावजूद भी वाटर हार्वेस्टिंग के लिए जहां एक ओर निजी भूस्वामी तो ठीक है शासकीय दफ्तरों में भी उक्त निर्देश को गंभीरता से नहीं लिया गया न ही वाटर हार्वेस्टिंग से जोड़ने के लिए शासकीय विभाग द्वारा जागरूकता कार्यक्रम भी नहीं किए गये। जिससे लोग जल के संचय का महत्व नहीं समझ पा रहे है ग्रामीण क्षेत्र में गिरते जल स्तर को लेकर सामाजिक संगठनों द्वारा छुटपुट प्रयास तो किए जाते है परंतु शासकीय अधिकारियों के सकारात्मक प्रयास व पहल न होने के कारण ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे है।
*प्राचीन जल स्रोतों को बचाने प्रशासन नही कर रहा पहल,
उल्लेखनीय है की अगर पुराने जल स्त्रोतों के रखरखाव पर ध्यान दिया जाता तो समस्या का समाधान काफी हद तक संभव था। लेकिन इनके संरक्षण पर ध्यान देना तो दूर बल्कि इन्हे जमींदोज कर सीमेंट कांक्रीट का जंगल तैयार करने भूमाफिया एवं प्रशासन की मिलीभगत नगर में जन चर्चा का विषय बनी हुई है। परंपरागत जल स्रोतों की उपेक्षा एवं अंधाधुंध नलकूप खनन ने भूजल का स्तर पाताल तक पहुंचा दिया इसको लेकर चिंता भी व्यक्त की जा रही है। लेकिन वगैर किसी ठोस कार्ययोजना के समस्या से निपटने का दिव्य स्वप्न गंभीर जल संकट की ओर धकेल रहा है पुराने जल स्त्रोत उपेक्षा की वजह से अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं।
इनका कहना है-
वार्ड प्रभारियों को पत्र जारी कर जानकारी ली जावेगी तत्संबत कार्यवाही की जाएगी।
शुशील वर्मा
मुख्य नगरपालिका अधिकारी सिहोरा