विदिशा जिला ब्यूरो मुकेश चतुर्वेदी
गंजबासौदा। परमपिता परमात्मा ने जब हमें मानव देह दी है।लेकिन हमें समय समय पर आत्म अभिमानी का अभ्यास करना चाहिए। यह पुरुषार्थ करने की बात है क्योंकि अब हम देह अभिमानी बन गये हैं। हमें विस्मृति हो गयी है कि हम अति सूक्ष्म पराभौतिक आत्मा हैं। यह सही आत्मनिरक्षण है। उक्त बात रविवार को बरेठ रोड स्थित ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा संचालित मेडिटेशन सेंटर पर विदिशा से आई बीके कौशल्या बहन ने मन की शांति के लिए राजयोग मेडिटेशन का अभ्यास कराते हुए उपस्थित भाई बहनों से कही
उन्होंने राजयोग का अर्थ बताते हुए कहा कि राजा अर्थात बादशाह राज्य करने वाला और योग अर्थात कनेक्शन अथवा सम्बन्ध। राजयोग एक परमयोग है जिससे आत्मा केवल परमात्मा की याद द्वारा अपने स्वयं के इन्द्रियों का मास्टर अथवा राजा बन जाती है। राजयोग मेडिटेशन पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए दो परस्पर कदम हैं। आत्मानुभूति और परमात्मानुभूति जैसे ही हम आत्मअभिमानी के अभ्यास को अमल में लाते हैं और वह हमारी चेतना का स्वाभाविक अवस्था बन जाता है तब हम हमारे परलौकिक परमात्म पिता को पहचानते हैं जो इस भौतिक जगत से परे परमधाम में वास करता है।
उन्होंने राजयोग मेडिटेशन अभ्यास के माध्यम से बताया कि राजयोग याने शान्ति, पवित्रता एवं सर्व शक्तियों के सागर परमपिता परमात्मा से सीधा कनेक्शन अथवा सम्बन्ध स्थापित करना। राजयोग में हम पहले स्वयं को आत्मा समझकर परमात्मा को उनके गुणों सहित शांति के सागर,परमपवित्र, प्रेम के सागर, आनंद के सागर और सर्वशक्तिवान याद करते हैं। इसके समानांतर हम अपने स्वयं के स्वभाव जैसे शान्ति, प्रेम इत्यादि से जुड़ने का गहरा अनुभव करते हैं।
योग शब्द का अर्थ है जोड़। राजयोग मेडिटेशन में आत्मा परमात्मा से कनेक्शन अथवा मानसिक जोड़ का अनुभव करती है । यह जोड़ स्थापित करने की विधि एक शुरुआत है अपने आतंरिक विश्व की यात्रा की ओर अपना वास्तविक आध्यात्मिक पहचान की खोज में।अपने भीतर प्रवेश करने की विधि द्वारा स्वयं को आत्मा अनुभव करना जो कि एक प्रकाशमान, चेतन ऊर्जा बिंदु है और उसके पश्चात उर्जा एवं गुणों के परम स्त्रोत से स्वयं को जोड़ने से आत्मा बहुतकाल के लिये सशक्त बन जाती है।
स्व सशक्तिकरण की यह विधि पूरी तरह से स्वैच्छिक है और इसमें मन के दमन का कोई भी तत्व शामिल नहीं है। वास्तव में यह मन की सभी सीमाओं से मुक्त करता है जो हम खीचतें हैं। यह स्वयं के विचारों, भावनाओं, बोल एवं कर्मों को आत्मा के शांति, प्रेम, आनंद, और सत्यता जैसे आत्मा के वास्तविक गुणों के साथ मेल कराता है। इसे ही हर प्रकार से स्व परिवर्तन कहेंगे। आयोजन के समापन पर प्रसादी का वितरण किया गया इस अवसर पर वीके पूनम, बीके राजकुमार, बीके प्रकाश भाई आदि उपस्थित थे।