प्रदीप गुप्ता/नर्मदापुरम/ (गुनौरा) द्वितीय दिवस इस हृदय भाव से कथावाचक पंडित रामनरेश द्विवेदी के मुखारविंद कथा ज्ञान का अमृत श्रोताओं ने सुना जिसमें बताया गया कि भक्ति में जब कोई कामना नहीं होती तो बिन कामना के सब कुछ प्राप्त हो जाता है। क्योंकि कामना के साथ किया गया तप और भक्ति सिर्फ़ कामना को ही पूर्ण करके ठहर जाती है, आगे श्री द्विवेदी ने बताया कि जिस प्रकार बिल्ली को देखकर कबूतर आंख बंद कर लेता है फिर भी बिल्ली उसे खा लेती है। उसी प्रकार मानव दिन प्रतिदिन मृत्यु के समीप जा रहा है और प्रतिदिन कई लोगों की मृत्यु देखकर भी हम सत्य को अनदेखा करते हैं और मात्र विपत्ति में भगवान को सुमिरते है जिसका कोई औचित्य नहीं, इसलिए श्रीमद भागवत कथा को सिर्फ सुनना नहीं चाहिए अपितु उसका मनन करने के साथ ही साथ उसे जीवन में उतारकर अपनी दिनचर्या में सकारात्मक परिवर्तन भी करना चाहिए। इसी श्रृंखला में गुरुजी ने श्री शुकदेव जी द्वारा राजा परीक्षित को बताए मृत्यु के मार्ग मृयमाड़ के रहस्य से अवगत कराते हुए चतुस्लोकि भागवत पुराण के बारे में बताया उन्होंने बताया कि भागवत कथा में श्री राधा नाम क्यों नहीं आया। क्योंकि राधा जी को शुकदेव जी अपनी गुरु मानते थे और गुरु का नाम लेते ही वे समाधिस्थ हो जाते थे इसलिए भागवत में श्री राधा रानी जी का नाम नहीं लिया गया है वे बताते हैं कि कोई भी दोहे तथा काव्यात्मक रचनाएं बिना भगवत नाम के लिए पूरी नहीं होती। इसी के साथ भगवान श्री नारायण के अवतारों की कथा सुनाते हुए श्री द्विवेदी जी ने कहा कि भगवान प्रत्येक जीव के अवतार में रहते हैं ताकि किसी भी जीव को ये प्रतीत न हो कि भगवान हमारे जैसे नहीं दिखते, गुनौरा ग्राम की इस पावन कथा में वृंदावन धाम से पधारे श्री कृष्ण मुरारी जी ने अपने भजनों से सतमार्ग का अर्थ जनता को समझाया जिनका अभिवादन श्री राधे पंडित जी ने किया तथा सभी ग्राम वासियों ने भजनों पर भक्तिमय होकर नृत्य किया।