मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी की मानस पुत्री सृष्टि देवी को ही मां कात्यायनी का रूप माना जाता है। पूर्वी भारत के राज्यों में बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में इन देवी को छठ मैया के रूप में पूजा जाता है। इसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त में मिलता है। देवी कात्यायनी ने ही ऋषि कात्या के घर पुत्री रूप में पैदा होकर महिषासुर का वध किया था। इसी कारण से विजयदशमी का पर्व देवी कात्यायनी का महिषासुर के वध करने के उपलक्ष्य में श्री राम के रावण वध के पूर्व के समय से ही मनाया जा रहा है। देवी कात्यायनी की शक्ति व अनुकंपा से ही गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में पाया था। इसके साथ ही श्री राम ने रावण से युद्ध के पहले देवी कात्यायनी का पूजन किया था और द्वापर युग में श्री कृष्ण ने पांडवों से युद्ध से पहले माता कात्यायनी का आवाहन व पूजन करवाया था।
मंत्र का जाप 108 बार करते हुए मां कात्यायनी को 108 गुड़हल के फूल अर्पित करें। ऐसा करने पर न केवल इच्छा पूर्ति होती है अपितु सांसारिक बंधनों से या कष्टों से मुक्ति मिलती है।
जिन विवाह योग कन्याओं का विवाह न हो रहा हो अथवा जिन्हें अपने पति से भरपूप प्रेम प्राप्त करने की इच्छा हो उन्हें देवी कात्यायनी को 16 श्रृंगार करना चाहिए और इसके साथ ही उनके विग्रह का ध्यान करते हुए उनसे इच्छित वर का वरदान मांगना चाहिए। देवी कात्यायनी की पूजा कालिंदी के पुष्पों से करने पर मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं।