ऐसा माना जाता है कि पितृ अपने परिवार की रक्षा कवच की तरह होते हैं। वह हमेशा अपने परिवार, अपने पीढ़ियों के बारे में ही सोचते हैं। उनकी समय-समय पर सहायता करते हैं। एक अवधारणा यह भी है कि ईश्वर पूरे सृष्टि के संचालक होते हैं और सभी को देखते हैं किन्तु पितृ केवल अपने परिवार को ही देखते हैं। जिस घर में पितरों की पूजा होती है अर्थात अपने मृतक पूर्वजों का स्मरण किया जाता है, उनके निमित्त भोजन वस्त्र आदि का दान करते हैं उस घर में पितरों की कृपा बनी रहती है। ऐसा मानते हैं कि पितृपक्ष में भी देवताओं पर पुष्प अर्पित करने से पहले पितरों को श्रद्धा पुष्प चढ़ाने चाहिए। किसी योग्य विद्वान ब्राह्मणों को भोजन पर आमंत्रित करें और अपने पितरों की रुचि का भोजन बना कर उन्हें श्रद्धा से खिलाएं। इसके साथ-साथ अपने पितरों के नाम से उनकी मृत्यु तिथि या श्राद्ध के दिन अपनी इच्छा एवं सामर्थ्य के अनुसार अभावग्रस्त गरीब, श्रमिक को भोजन कराएं।
ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले पंचबलि निकालने का भी विधान है। पंचबलि का अर्थ है पांच प्रकार के प्राणियों के लिए भोजन निकालना। सबसे पहले गौ बलि अर्थात गाय के निमित्त भोजन निकालें। दूसरा श्वान बलि अर्थात कुत्ते के लिए भोजन निकालें। तीसरा काक बलि अर्थात कौवें के लिए भोजन निकालें। चौथा विश्वदेव बलि अर्थात देवता आदि के लिए भोजन निकालें। पांचवा पिप्पलिका बलि अर्थात चीटियों के लिए भोजन निकालने के पश्चात ब्राह्मण भोजन कराएं। ब्राह्मण को भोजन कराते समय पत्तल का प्रयोग अथवा तांबे, पीतल, कांसे, चांदी आदि के बर्तन में भोजन कराना चाहिए क्योंकि पितरों को लोहे के अर्थात स्टील के बर्तनों में खाना खिलाना शुभ नहीं माना गया है।
पितरों के निमित्त ब्राह्मण भोजन में रखे सावधानियां: पितरों के लिए बनाए गए भोजन में उड़द, मसूर, अरहर, चना, लौकी बैंगन, हींग,प्याज, लहसुन,काला नमक, अलसी का तेल, पीली सरसों का तेल, मांसाहारी भोजन का प्रयोग वर्जित माना गया है।
श्रद्धा में बनाए जाने वाला भोजन: श्राद्ध के दिन गाय के दूध से बनी वस्तुएं खीर, मिष्ठान, जौ, धान, तिल, गेहूं, मूंग, आम, अनार, आंवला, नारियल,नारंगी, अंगूर चिरौंजी, मटर, सरसों का तेल तिल्ली का तेल आदि उपयोग करना चाहिए।
श्राद्ध के दिन अपने पितरों के लिए काले तिल के द्वारा तर्पण एवं संकल्प करना चाहिए। काले तिल के कुछ दाने श्राद्ध स्थल पर अवश्य बिखेर दें ताकि पितरों के निमित्त निकाला गया भोजन दुष्ट आत्माएं ग्रहण न करें। श्राद्ध के दिन अपने पितरों के गुणों का स्मरण करते हुए मौन व्रत धारण करें। कम से कम बोलें। सदाचरण का पालन करें। वैसे तो पितृपक्ष में परिवार में पति-पत्नी को नियम संयम से रहना चाहिए। भोग विलास से दूर रहें और पितरों का स्मरण करें। जिस परिवार के पितृ प्रसन्न होते हैं वह परिवार सदैव उन्नति करता है। इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि पितरों के कभी अवहेलना न करें और जितनी भी श्रद्धा हो पितरों के निमित्त भोजन, वस्त्र आदि दान करते रहें।
(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)