कलश का सरल अर्थ है जल से भरा हुवा सुशोभित पात्र है। हिंदू धर्म में सभी मांगलिक कार्यों में कलश स्थापित करने का विशेष महत्व माना गया हैं।
हिंदू संस्कृति में कलश को एक विशेष आकार के पात्र को कहा जाता हैं, कलश के ऊपरी भाग में भगवान विष्णु, मध्य में भगवान शिव और मूल में ब्रह्माजी का निवास होता है। इसलिए पूजन में कलश को देवी-देवता की शक्ति, तीर्थस्थान आदि का प्रतीक मानकर कलश स्थापित किया जाता है। हिंदू धर्म में कलश को सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना जाता है। इसलिए विभिन्न धार्मिक कार्यों एवं गृहप्रवेश इत्यादि शुभ कार्यों में कार्य की शुभता में वृद्धि एवं मंगल कामनाके उद्देश्य से पूजन के दोरान कलश स्थापित किया जाता है।
कलश में प्रयुक्त होने वाली सामग्री
हिंदू शास्त्रों में उल्लेख हैं की कलश को बिना जल के स्थापित करना अशुभ होता है। इसीलिए कलश को हमेशा पानी इत्यादि सामग्री से भर कर रखना चाहिए। प्राय कलश में जल, पान के पत्ते, अक्षत, कुमकुम, केसर, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, श्रीफल, अनाज इत्यादि का उपयोग पूजन हेतु किया जाता हैं। विभिन्न पूजन हेतु जल के साथ भिन्न सामग्रीयों का प्रयोग किया जाता है।
कलश का पवित्र जल मनुष्य के मन को स्वच्छ, निर्मल एवं शीतल बनाएं रखने का प्रतिक माना गया हैं। कलश पर स्वस्तिक चिह्न बनाने का प्रतिक को शास्त्रों में स्वस्तिक ब्रह्मांड का प्रतीक माना गया है। स्वस्तिक को भगवान श्री गणेश का साकार रूप है। मान्त्यता हैं, कि स्वस्तिक के मध्य भाग को भगवान विष्णु की नाभि, चारों रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में प्रकट करने की भावना मानी जाती हैं।
कलश के ऊपर श्रीफल स्थापित करना भगवान श्री गणेश का प्रतीक माना जाता है। कलश में सुपारी, पुष्प, दुर्वा इत्यादि आदि सामग्री मनुष्य की जीवन शक्ति का प्रतिक माना जाता हैं।
यहि कारण हैं की हिंदू संस्कृति में सभी प्रकार के धार्मिक एवं मांगलिक कार्यों में कलश स्थापित करने का विशेष महत्व पौराणिक काल से ही रहा हैं।