विदिशा जिला ब्यूरो मुकेश चतुर्वेदी
गंज बासौदा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मनसा पूर्ण हनुमान मंदिर के पास स्थित सेवा केंद्र में रक्षा सूत्र बांधकर रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया गया जिसमें अपर सत्र न्यायाधीश ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने रक्षाबंधन का आध्यात्मिक अर्थ बताते हुए कहा कहा कि रक्षाबंधन हम सभी भारतवासियों के लिए एक पावन पर्व है इस दिन हर बहन अपने भाई को राखी बांधती है। इस शुभ आशा के साथ की उसका भाई जीवन भर उसकी और उसकी पवित्रता की रक्षा करेगा। यह बंधन एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसमें एक बार वधं जाने से उस रिश्ते का सम्मान बहुत बढ़ जाता है फिर उस रिश्ते में कभी विकारी दृष्टि वृद्धि उत्पन्न नहीं हो सकती परंतु आज कलयुग के इस समय पर कुछ आत्मा इस पवित्र बंधन का सम्मान नहीं रखते आज के समय पर हर मनुष्य आत्माओं के अंदर यह जो पांच विकार है काम, क्रोध, लोग, मोह, अहंकार यह अपने चरम सीमा पर पहुंच चुके हैं जो कभी-कभी तो भाई बहन के पवित्र संबंध को भी कलंकित कर देते हैं। आज के समय पर पवित्र डोर राखी का महत्व, अर्थ दोनों ही बदल गए हैं बस साल में एक बार आने वाली रसम बनकर रह गई है। पवन रक्षाबंधन को मात्र गिफ्टों का त्यौहार बना करके रख दिया है। यह राखी उत्सव कलयुग की इस भयामय स्थिति को देख स्वयं परमपिता परमात्मा अवतरित होकर हमें इस पवित्र बंधन राखी का वास्तविक रहस्य बताते हैं वह हमें अपना असली परिचय देते हैं कि वास्तव में हम शरीर नहीं अपितु यह शरीर को चलने वाली एक आत्मा है। आत्मा अजर अमर अविनाशी है जो न मरती है ना जलती है जबकि यह शरीर विनाशी है जो की एक समय आने पर समाप्त हो जाता है इसकी पश्चात आत्मा अपने लिए दूसरा शरीर धारण करती है जिसको हम अगला जन्म कहते हैं इसका मतलब शरीर बदलता परंतु आत्मा वही रहती है। कलयुग के अंतिम समय पर परमात्मा आकर हम सबको अपना असली परिचय दें हम सब के बीच आपस में पवित्र संबंध की स्थापना कर रहे हैं । हम सबको सच्ची राखी का अर्थ बता रहे हैं कि जिस दिन हम सब आत्माएं आपस में भाईचारे का संबंध जोड़ेंगे एक दूसरे को आत्मिक दृष्टि से देखेंगे हम एक पिता के बच्चे इस संबंध की स्मृति से आपस में प्यार और सम्मान की लेनदेन करेंगे उसी दिन हम सब वास्तव में सच्चा सच्चा रक्षा बंधन उत्सव का पालन कर पाएंगे। पवित्रता की प्रतिज्ञा कर आत्मिक दृष्टि रखना ही सच्चा रक्षाबंधन है। रक्षाबंधन का अर्थ है एक दूसरे की पवित्रता व सम्मान की रक्षा करना जो कि केवल तब होगा जब हम सब आत्मिक संबंध जोड़ेंगे राखी बंधन अर्थात आपस में एक पवित्र प्रेम के बंधन में बंधना जो हम सब के आत्मिक पिता परमात्मा की बताई हुई शिक्षाओं पर चलकर ही संभव है। ब्रह्माकुमारी रुक्मिणी दीदी ने सबको बुराइयां छोड़ने की प्रतिज्ञा कराई एवं मेडिटेशन कराया अंत में सभी को रक्षा सूत्र बांधा गया।