प्रदीप गुप्ता/ नर्मदापुरम/ जगदीश मंदिर धर्मशाला में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा में पं. तरुण तिवारी ने तृतीय दिवस की कथा का सुन्दर वर्णन श्रोताओं को श्रवण कराया। कथा प्रसंग को प्रारम्भ करते हुए कहा की “दुर्लभो मानुषो देहो देहिनाम् क्षणभंगुर:” मानव देह दुर्लभ है और दुर्लभ होने पर भी क्षण भंगुर है। इसलिये मानव जीवन की सार्थकता तभी है जब हम भगवान् के श्री चरणों का आश्रय करें। तक्षक नाग ने परीक्षित को ही डसा ऐसा नही है, हम सब परीक्षित हैं। हम सबको काल रुपी तक्षक डसेगा और सातवे दिन ही डसेगा। क्योंकि सात दिन में ही सबको मरना है तो तक्षक डसे उससे पहले हम सब परमात्मा की चरण शरण ग्रहण कर लें इसी में जीवन की सार्थकता है । क्योंकि मनुष्य के द्वारा किया गया हर कर्म भगवान के खाते में लिखाता है जो भी जैसा कर्म करता है वैसा ही फल पाता है। समय की महिमा बताते हुए कहा कि समय जब निकल जाता है तो बहुत चक्कर खिलाता है। इसलिए समय का उपयोग सत्सर्ग में करे कथा को हमें एकाग्रचित होकर सुनना चाहिए और जितने विश्वास के साथ हम भगवान की कथा सुनते हैं उतना ही फल हमें अधिक प्राप्त होता है और दुनिया में कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो भगवान की कथा से बड़ा है। जिसने हमें ये मानव जीवन दिया, जिसका दिया हुआ हम खाते हैं उसी की भक्ति के लिए हमारे पास समय नहीं है। पं. जी ने परीक्षित जी महाराज के प्रसंग को प्रारम्भ करते हुए कहा की जब परीक्षित जी को पता चला कि सातवें दिन उनकी मृत्यु निश्चित है तो अपना सब कुछ त्याग दिया और शुकदेव जी से पूछा जिसकी मृत्यु निश्चित हो उसे क्या करना चाहिए और मृत्यु हमारे जीवन का कटु सत्य है। हम इस संसार में खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जायंगे। यह पता होने के बावजूद भी हम अपना सारा जीवन सांसारिक भोगविलास में गुजार देते हैं और प्रभु ने हमें जिस कार्य के लिए मानव जीवन दिया है उससे हम भटक जाते हैं। शुकदेव जी ने परीक्षित जी महाराज से कहा हे राजन् जिस की मृत्यु निश्चित हो उसे भागवत कथा श्रवण करनी चाहिए। उसी प्रकार हमें भी सच्चे मन से भागवत कथा श्रवण करनी चाहिए और भगवान की भक्ति करनी चाहिए। पं. जी ने बताया कि कारण, स्थान और समय के बिना मृत्यु नहीं होती और हमारे जन्म से पहले ही ये निर्धारित होता है कि किस वजह से, किस स्थान पर और किस समय हमारी मृत्यु होगी। कर्मा बाई की कथा सुनाते हुए कहा कि भक्ति में किसी प्रकार की कामना नहीं होनी चाहिए प्रेम होना चाहिए।क्योकि राम ही केवल प्रेम पियारा। आगे कथा के प्रसंग में सृष्टी का विस्तार,वराह अवतार , कपिल उपाख्यान संतो की महिमा, सती चरित्र, धुर्व चरित्र, भरत चरित्र अजामिल उपाख्यान तक की कथा सुनाई और कहा कि अजामिल उपाख्यान में भगवन नाम की महिमा का बखान किया। अजामिल ने एक बार गलती से भगवान का नाम ले लिया उसे भगवत्प्राप्ति हो गयी फिर यदि हम श्रद्धा से उस परम पिता का नाम ले तो कहना ही क्या है तिवारी जी ने बताया की मंत्र मे, सूतक नही आ सकता घर मे सूतक आ सकता है पर प्रभु के नाम मे कभी सूतक नही आ सकती भगवान का नाम कैसे भी लिया जाए मंगलकारी होता है। कल श्री कृष्ण जन्मोत्सब मनाया जाएगा कथा प्रतिदिन 2 से 6 बजे तक चल रही है।