पन्ना, पवई, शासकीय माध्यमिक शाला नारायणपुरा में पर्यावरण प्रेमी शिक्षक सतानंद पाठक ने पौधारोपण करते हुए बताया कि
मानव जीवन प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है. हजारों वर्षों से हम प्रकृति पर आश्रित है. पर पिछले कुछ दशकों से हमने आवश्यकता से अधिक प्राकृतिक सम्पदा का दोहन शुरू कर दिया. जिसके परिणाम यह ही कि पृथ्वी के वातावरण में अनेक परिवर्तन हुए, जैसे तापमान में बढोत्तरी, ओजोन परत में छेद होना इसके साथ ही बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं का बढ़ना है. प्रकृति के बिना मानव जीवन संभव नहीं है. ऐसे में हमें इस प्रकृति का संरक्षण करना चाहिए. प्रकृति के इसी महत्त्व को देखते हुए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. इसके माध्यम से प्रकृति के प्रति लोगों को जागरुक करने का प्रयास किया जाता है. विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया था, जिसमें 119 देश शामिल हुए थे. इसके बाद से 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा. 1972 में ही इस दिन को मनाने की नींव राखी गई थी प्लास्टिक का प्रयोग न करें आज के समय में प्लास्टिक सबसे अधिक पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है. प्लास्टिक की वजह से कितने ही जीव आज विलुप्त होने की कगार में है. समुद्री जीवों को भी प्लास्टिक ने बहुत अधिक नुकसान पहुँचाया है. कछुए, मछली, सीबर्ड और अन्य जीव जन्तुओं को इसका सामना करना पड़ रहा है.बारिश के पानी का संग्रह आज के समय में मनुष्यों के लिए सबसे बढ़ी समस्या पानी है. लगातार पानी की कमी हो रही है. कई देशों में तो पानी न के बराबर रह गया है. ऐसे में बारिश के पानी का संरक्षण करना चाहिएअधिक से अधिक पौधें लगाना पौधे प्रकृति के लिए बहुत जरुरी है यह पर्यावरण की हवा को शुद्ध करने के साथ ही तापमान को भी स्थिर रखने में मदद करते हैं. साथ ही ओक्सीजन का सोर्स भी है. जिसके बिना मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता है
रिपोर्टर संतोष चौबे