संवाददाता- महेन्द्र शर्मा बन्टी
रायपुर – विप्र सामाजिक संस्था समग्र ब्राह्मण परिषद् छत्तीसगढ़ द्वारा रविवार 25 फरवरी को राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित प्राचीन श्री महामाया देवी मंदिर के सत्संग भवन परिसर में एक दिवसीय प्रदेश स्तरीय सामूहिक उपनयन संस्कार का आयोजन किया गया, जिसके अंतर्गत वेद पाठी ब्राह्मणों के द्वारा 51 ब्राह्मण बटुकों का उपनयन संस्कार कराया गया.
पंडितों के द्वारा संपूर्ण विधि विधान के साथ तैयार मंडप में सभी देवी देवताओं का पूजन करने के बाद वैदिक रीति रिवाज एवं प्रचलित परंपरानुसार के अनुसार इस कार्यक्रम में सबसे पहले तेलमाटी, मंडपाच्छादन, हरिद्रालेपन, चिकट, मातृका पूजन हुआ इसके बाद उपनयन संस्कार के लिये उपस्थित सभी बटुकों का मुंडन करवाया गया. पुनः स्नान के बाद सभी बटुकों ने आठ ब्राह्मणों के साथ भोजन कर अष्ट ब्राह्मण भोज की विधि संपन्न की. इसके बाद आचार्यों ने पलाश दंड पकड़े हुए बटुकों को जनेऊ धारण करवाकर भगवान सूर्यनारायण का दर्शन करवाया. तत्पश्चात् ब्राह्मणों द्वारा प्रत्येक बटुक को कान में गायत्री मंत्र की दीक्षा दी गयी. शिक्षा के अंतर्गत बताया गया कि जनेऊ के बाद किन-किन नियमों का पालन करना है. इसके बाद बाद बटुकों ने आयोजन में उपस्थित सभी स्वजनों से “भवति भिक्षां देहि” कहते हुये भिक्षा मांगी.
संस्कार प्रक्रिया संपन्न होने के बाद सभी बटुकों ने नये वस्त्र धारण किये, उसके बाद श्री महामाया देवी मंदिर सत्संग भवन से सरस्वती चौक, महावीर अखाड़ा, प्राचीन बावली वाले श्री हनुमान मंदिर, नागरीदास मंदिर से वापस श्री महामाया मंदिर तक धूमधाम से आतिशबाजी एवं गाजे-बाजे के साथ उनकी बारात निकाली गयी।
सनातन धर्म में कुल सोलह संस्कार होते हैं इसमें उपनयन संस्कार यानी जनेऊ संस्कार को दसवां स्थान प्राप्त है. इस संस्कार के अंतर्गत ही व्यक्ति को जनेऊ पहनाई जाती है. इसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है. उपनयन का शाब्दिक अर्थ होता है खुद को अंधकार से दूर रखना और प्रकाश की ओर बढ़ना. जनेऊ के पवित्र धागे को व्यक्ति को आध्यात्म से जोड़े रखते हैं. वह बुरे कर्म, बुरे विचारों से दूर रहता है. यज्ञोपवीत या जनेऊ धारण करने वाले को यज्ञ और स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है. यही वजह है कि सनातन धर्म में जनेऊ संस्कार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यज्ञोपवीत या जनेऊ धारण करने से त्रिदेव का आशीर्वाद मिलता है.
संगठन के प्रदेशाध्यक्ष डा.भावेश शुक्ला “पराशर” एवं मातृशक्ति परिषद् की प्रांत प्रमुख श्रीमती प्रमिला तिवारी द्वारा जानकारी दी गयी कि जब माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा के लिए भेजते हैं, तब दीक्षा दी जाती थी. सनातन धर्म में दिशाहीन जीवन को एक दिशा देना ही दीक्षा माना जाता है. दीक्षा का अर्थ संकल्प है. किसी भी व्यक्ति को दीक्षा देने का अर्थ दूसरा जन्म और व्यक्तित्व देना है. इतना ही जनेऊ व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. जनेऊ पहनने के कारण कान के पास की नसें दबने से बढ़े हुए रक्तचाप को नियंत्रित और कष्ट से होने वाली श्वसन क्रिया को सामान्य किया जा सकता है. कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है। इससे पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है.
संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष पं.शैलेन्द्र रिछारिया एवं प्रदेश सचिव श्रीमती अर्चना दीवान ने बताया कि संगठन द्वारा “उपनयन संस्कार” के सफलतम आयोजन का यह तीसरा वर्ष है. इस वर्ष भी प्रदेश के रायपुर सहित अंबिकापुर, कांकेर, दुर्ग, राजनांदगांव आदि विभिन्न जिलों से आये ब्राह्मण बटुकों का उपनयन संस्कार कराया गया है.
पं.लक्ष्मण तिवारी सहित आठ ब्राह्मणों ने उपनयन संस्कार की विधि को संपन्न कराया. कार्यक्रम में मंच संचालन डा. श्रीमती आरती उपाध्याय, पं.श्रीकांत तिवारी एवं पं.अखिलेश त्रिपाठी ने किया. इस आयोजन में पं.शैलेन्द्र शर्मा, पं.विवेक दुबे, पं.श्रीकांत तिवारी, पं.उमाकांत तिवारी, पं.दीपक शुक्ला, पं.गौरव मिश्रा, पं.चक्रेश तिवारी, सहित श्री महामाया देवी मंदिर सार्वजनिक न्यास का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ.
प्रात: 8 बजे से सायं 6 बजे तक चले इस आयोजन में श्रीमती आरती शुक्ला, श्रीमती कालिंदी उपाध्याय, श्रीमती स्वाति मिश्रा, श्रीमती मिनी पांडेय, श्रीमती खुशबू शर्मा, नमिता शर्मा, पं.गोपालधर दीवान, पं.सजल तिवारी, पं.अनुराग त्रिपाठी, पं.संजय शर्मा, पं.कमलेश तिवारी, श्रीमती शशि द्विवेदी, श्रीमती राजेश्वरी शर्मा, श्रीमती दीपमाला पांडेय, पं.आयुष उपाध्याय, पं.पृथ्वी दुबे, पं.अमित जोशी, कु.आयुषी शर्मा, सहित छत्तीसगढ़ प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के संगठन प्रतिनिधि उपस्थित थे.