प्रदीप गुप्ता/नर्मदापुरम/तृतीय दिवस श्रीमद् भागवत कथा पुराण का मर्म समझाते हुए व्याकरणाचार्य श्री राम नरेश द्विवेदी ने गुनौरा ग्राम के प्रांगण में बैठे श्रोतागणों को बताया कि मनुष्य की इंद्रियां–मृग, हाथी, चींटी, भौरे और मछली के समान होती है। जहां मृग कान की कमजोरी, हाथी स्पर्श की कमजोरी, चींटी दृष्टि से कमजोर होने के कारण, भोरा गंध की कमजोरी के कारण तथा मछली स्वाद के कारण मारी जाती है। उसी प्रकार मनुष्य भी इन पांचों इंद्रियों की नियंत्रित न होने के कारण सद्गति नहीं पा पाता क्योंकि इन इंद्रियों का राजा मन है और मन और मक्खी का आचरण एक जैसा होता है। जैसे मक्खी मीठे गुड़ पर भी बैठती हैं और गंदगी पर भी वैसे ही मन भी सत्संग के पास भी लगता है और दूषित स्थानों पर भी अत: मन को भी सत्संग में एकाग्रचित्त करना चाहिए, आचार्य जी ने शिव जी द्वारा राजा दक्ष के उद्धार की कथा सुनाते हुए बताया कि उन्हें वैद्यनाथ इसलिए कहते हैं क्योंकि शिव जी जैसा शल्य चिकित्सक कोई नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि ब्रह्मा–विष्णु–महेश एक ही है, इनमे भेद करने वाले को देखने वाले को भी सचेल स्नान अर्थात् कपड़े पहनकर स्नान करना पड़ता है इसलिए इनमें भेद कभी नहीं करना चाहिए श्री द्विवेदी उत्तानपाद जी की कथा सुनाते हुए कहते हैं कि हम सभी पैर उठाकर जन्म लेते हैं अत: हर व्यक्ति उत्तानपद कहलाता है। तदोपरांत उन्होंने ध्रुव जी के तप का महत्व बताते हुए कहा कि आज भी हमारे सुरक्षा बल ध्रुव तारे और शिव मंदिर की जिलहरी देखकर घनघोर जंगल में अपनी दिशा सुनिश्चित करते हैं। इसके साथ ही साथ आचार्य जी ने इंद्र द्वारा ब्रह्म हत्या के पाप को चार भागों में बंटने के साथ वृत्तासुर के विरह के वर मांगने से लेकर प्रहलाद द्वारा मांगी गई पिता की मुक्ति धर्म से अवगत कराया और जड़भरत जी का चरित्र बताते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत कथा को तरुणावस्था में ही सुनना चाहिए। क्योंकि जब कान काम ही करना बंद कर दे ऐसी वृद्धावस्था में कथा सुनने का क्या महत्व, कथा का मर्म सुनने डोलरिया तहसील से वरिष्ठ समाजसेवी चन्दन सिंह परिहार, गूजरवाड़ा से कथा विद्वान मनोहर लाल दुबे तथा अन्य स्थानों से श्रृद्धालु पहुंचे जिनका आभार रेवती रमन दुबे तथा श्रवण दुबे ने प्रकट किया।