प्रदीप गुप्ता/नर्मदापुरम/
अलविदा ‘प्रशांत’ आपकी ऊर्जा, विश्लेषण क्षमता, हिंदी-उर्दू भाषा पर जबरदस्त पकड़, पत्रकारिता के उच्चमानदंड, सहकर्मियों के प्रति सम्मान और जिले के सभी पत्रकारों से स्नेह हमेशा याद रहेगा। रविवार को पिपरिया के मोक्षधाम में आपका पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। जब आपके असमय निधन की खबर मिली थीं। तभी से असहज मनहूस कर रहे है।.
स्मृति शेष……
*पुण्य सलिला मां नर्मदा की माटी की महक में जुड़ीं हैं वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दुबे की स्मृति*
हरिभूमि के साथी मदन शर्मा ने बताया कि अवसान का अहसास आज मेरे साथ ही उनके परिवार व जिले के वरिष्ठ पत्रकारों और जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन सहित समाजसेवी, राजनीतिक दलों के लिए कितना हृदयवेदन कर देने वाला है, इसकी बानगी भर है। नर्मदापुरम सहित मध्यप्रदेश में हजारों मित्रों को हुआ। किसी के लिए भी यह दर्द जिसे शायद मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूं। कलम के सच्चे सिपाही का असमय निधन से मन दुःखी है। प्रशांत दुबे जी मृत्युलोक से देह त्याग ब्रह्मलीन हो गए। उनके असमय निधन की क्षति को सहन कर पाना बहुत मुश्किल हैं। नर्मदापुरम में अंतिम क्षणों में उनका पार्थिव शरीर सफेद कपड़ों से लिपटा था और गले में मालाएं थीं, दोनों आंखे बंद थीं पास ही एम्बुलेंस में वरिष्ठ पत्रकार प्रफुल्ल तिवारी बैठे थे लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे मुझसे कह रहे हो कि शर्मा जी मेरी तबियत अचानक खराब हो गई थीं इस कारण में अस्पताल आया था। मैं पिछले करीब 5 वर्षों से उनके साथ ही हरिभूमि अखबार में कार्यरत था। वे मेरे ऑफिस पहुचने पर यह जरूर पूछते थे कि शर्मा जी आज खबर में फ्लायर, लीड और बॉटम क्या दे रहो हो। चूंकि मैं पेज भी स्वयं ही डिजाइन करता था। बस वह मुझसे इतना ही कहते थे कि शर्मा जी प्रिंटिंग समय के पहले पेज छोड़ देना।
अब उनकी सादगी, सहजता और शांत स्वभाव के साथ ही उनके साथ बिताए 5 वर्षों की रह-रहकर याद आ रहीं। उनके जीवन पर लिखने के लिए शब्द तो बहुत है, लेकिन उनके असमय निधन ने मन को व्यथित कर दिया है। उनका पार्थिव शरीर उनके पिपरिया स्थित निवास पर सीधे अस्पताल से ले जाया गया है। प्रशांत दुबे जी की दो छोटी बच्चियां हैं जिनसे उन्होंने अंतिम समय में अस्पताल से बात भी की थीं। वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दुबे जी के निधन की सूचना मिलते ही कलेक्टर, एसपी, सोहागपुर विधायक, भाजपा जिला अध्यक्ष, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सहित जिले के कई वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक दलों के जनप्रतिधि, डॉक्टर सहित तमाम उनके जानने-पहचानने वाले अस्पताल पहुंच गए थे। ईश्वर उनकी आत्मा को श्री चरणों में स्थान दे। कोरोना काल में उन्होंने मुझसे कहा था कि जिंदगी का एकमात्र सच ‘मौत’ हैं। यह तीखा है और कड़वा होता है। ऐसे ही एक सच का सामना उन्होंने कर लिया।
*इटारसी से वरिष्ठ पत्रकार रोहित नागे ने बताया*
नाम की तरह तुम शांत हो गये, हमारे दिलों में दुखों का ज्वालामुखी विस्फोट करके प्रशांत। यथा नाम, तथा गुण। पत्रकारिता का चमकता सितारा, शांत, हो गया। प्रशांत ने जब भोपाल में पत्रकारिता की, तब भी अपनी माटी में घुल मिलकर काम करने की तीव्र इच्छा को देखते हुए हम उसे इटारसी लेकर आये। बहुत कम लोगों को पता होगा, प्रशांत ने नर्मदांचल में पहली कर्मभूमि इटारसी को बनाया। बेहद कम समय के लिए ही सही। महज 8 दिन। दरअसल, प्रशांत दुबे की इच्छा थी, जिला मुख्यालय पर काम करने की। मेरी पहली मुलाकात भोपाल में उन दिनों तेजी से उभरते एक अखबार के दफ्तर में हुई जहां हम तीन दिवसीय अधिवेशन में शामिल हुए थे। वहीं रात को जब हम लोग हॉल में सोते थे, तो अपने-अपने बारे में एक दूसरे को बताते थे। पूरे हाल में करीब सौ रिपोर्टर थे। प्रशांत ने जब बताया कि वे होशंगाबाद (उन दिनों जिले का यही नाम था) के रहने वाले हैं तो अच्छा लगा कि अपने जिले का एक बंदा मिला। बैतूल और होशंगाबाद वाले मिलकर घंटे बतियाते थे। मैंने ही कहा, प्रशांत कभी इच्छा नहीं हुई कि अपने जिले में काम करें। हालांकि राजधानी में पत्रकारिता करना ज्यादातर लोगों की इच्छा होती है। प्रशांत का जवाब था, भैया संपादक जी अनुमति दे देंगे तो कोई दिक्कत नहीं है। मैंने तत्काल शीले भाईसाहब (अरविंद शीले, उन दिनों हमारे संपादक थे) से बात की। उन्होंने कहा, वैसे भी इटारसी में तुम्हें दो रिपोर्टर की जरूरत होगी, ही। प्रशांत जा सकते हैं। तीसरे दिन एक जीप में कम्प्यूटर सिस्टम लेकर हम रात को भोपाल से रवाना हो गये। देर रात इटारसी पहुंचे, प्रशांत को रात गोठी धर्मशाला में रुकवाया। केवल एक सप्ताह प्रशांत ने इटारसी में काम किया। मन तो जिला मुख्यालय पर काम करने का था। सातवे दिन कहा, भैया आज रविवार है। आफिस बंद रहे, बाजार में सन्नाटा रहा। कोई खबर के लिए बाहर नहीं जा सका। मैंने कहा कोई बात नहीं, नयायार्ड में एक चोरी की घटना हुई है, वहां जाकर देख आओ। प्रशांत ने खबर लाकर मुझे दी और कहा, भैया यदि मैं होशंगाबाद में काम करुं तो आप सर से बात कर सकते हैं, वहां काम करने का मन है। मैंने भोपाल बात की और सोमवार से प्रशांत दुबे नर्मदापुरम आफिस चले गये। वे तब से ही वहीं अपनी सेवाएं दे रहे थे, बहुत बड़ा नाम अपनी काबिलियत के दम पर स्थापित कर लिया। लोगों के दिलों में राज किया, पत्रकारिता में काफी कुछ हासिल करने के बावजूद, अपने नाम के अनुरूप शांत और स्थित रहे।पहली कर्मस्थली इटारसी थी, दुनिया से रुख्सत होने से पहले वे वापस यहां आये, जाने से आधा घंटे पहले मुझसे मिले। यहां कर्म करने का अंतिम दिन रविवार था। पंचतत्व में विलीन होने का दिन रविवार था। प्रशांत एकदम शांत, अत्यधिक शांत थे। और उनको अंतिम विदाई देने वालों के मन के भीतर दुखों के ज्वालामुखी का विस्फोट हो रहा था। कभी-कभी, यह वाक्य बड़ा बेमानी सा लगता है ‘ईश्वर जो करता है, अच्छे के लिए करता है ‘ ये अच्छा नहीं हुआ। प्रशांत तुम बहुत याद आओगे, पहली और आखिरी मुलाकात करते गये। जब इटारसी आकर मुझसे मिले, कहा भैया कुछ असहज सा लग रहा है, एसीडिटी के कारण अजीब सा लग रहा है, आसपास कोई मेडिकल स्टोर है, क्या? मैं दवा लेकर आता हूं, कहकर गये तो लौटकर क्यों नहीं आये। दिमाग कहता है, अब तुम नहीं आ सकते, पर दिल को कैसे समझाएं, जो यही कह रहा है, लौट आओ प्रशांत।
खबर बनाते समय मेरी भी आंखें भर आई, मेरा क्या उनके सभी शुभचिंतकों और मिलने वालों का भी यही हाल है। पर कहते हैं कि होनी को कौन टाल सकता है विधाता ने जन्म के समय ही सब कुछ लिख दिया है और और होता भी वही है, ऐसा कहकर हम मन को समझा ही सकते हैं।