प्रदीप गुप्ता/ नर्मदापुरम/ जगदीश मंदिर धर्मशाला में चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के षष्ठं एंव सप्तम दिवस में श्री कृष्ण रुकमणी विवाह उत्सव मनाया गया। पं.तरुण तिवारी ने गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भाव का सुन्दर वर्णन श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया। पं. तरुण तिवारी ने रासपंचध्याई के माध्यम से श्री शुकदेव जी के त्याग व श्री कृष्ण के लिए समर्पण के बारे में बताते हुए कहा कि जब तक व्यक्ति अपने अहम् का त्याग नहीं करता तब तक वो भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता। पं.जी ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में समझाते हुए कहा कि जब मन में अँधेरा हो जाये तो ज्ञान रुपी ज्वाला में अपने आप को तपा दो तो भगवान ज़रूर मिलेंगे। कथा के प्रारम्भ में श्रोताओं को समझाते हुए कहा कि भगवान से मिलने का मार्ग तभी खुलता है जब आप क्षमा करना सीख जाते हैं, जब आप प्रेम करना सीख जाते हैं और जब आप त्याग करना सीख जाते हैं। आगे बताया कि गोपियों और श्री कृष्ण में वात्सल्य भाव ही था। शुकदेव जी महाराज परीक्षित से कहते हैं राजन जो इस कथा को सुनता हैं, उसे भगवान के रसमय स्वरूप का दर्शन होता हैं। उसके अंदर से काम हटकर श्याम के प्रति प्रेम जाग्रत होता हैं। गोपी गीत पर प्रकाश डाला और बताया कि रास लीला काम लीला नहीं है काम विजय लीला हे जीसमें काम को भगवान ने उलटा टांग दीया भगवान शंकर स्वयं गोपी रुप लेकर आए थे। आगे के प्रसंग में कंस वध, उद्धव गोपी संवाद में प्रेम की परिभाषा समझाई और श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह धूमधाम से मनाया गया। श्रोताओं ने नृत्य करते हुए भगवान द्वारिकाधीश के विवाह में शामिल हुए परीक्षित जी ने अंत में कृष्ण सुदामा मिलन का जब वर्णन किया तो सभी श्रद्धालु भाव विभोर हो गये। साथ ग्याहर एंव बारह आध्याय का वर्णन कर कथा का समापन किया ओर सभी श्रोता गण का आभार माना एंव धार्मिक महिला मंडल को सफल आयोजन की बधाई प्रेषित की।