प्रदीप गुप्ता/ नर्मदापुरम/ पेयजल के लिये आरओ या मिनरल वॉटर , साफ हवा के लिये एयर क्लीनर जैसे उपकरणों को तो घरों में देखा जाने लगा है , अगर आगे सर्तक नहीं हुये तो सूर्य की किरणों को छानने के लिये यंत्रों को लगाने की नौबत आ सकती है। सूर्य से आने वाली किरणों में से त्वचा कैंसर जैसे रोग पैदा करने की क्षमता रखने वाली अल्ट्रावायलेट किरणें वैसे तो प्रकृति द्वारा निर्मित ओजोन परत द्वारा पृथ्वी सतह तक नहीं पहुंचने दी जाती है लेकिन मनुष्य की लापरवाही से निकलने वाले क्लोरो फ्लोरो रसायन इस रक्षकपरत में भी छिद्र बना चुके हैं। अब आगे इसे रोकने की जिम्मेदारी सभी की है, यह वैज्ञानिक संदेश नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने छाते से बनाये मॉडल से आम लोगों दिया। इसमें ओजोन परत का महत्व बताया। यह कार्यक्रम विश्व ओजोन दिवस के उपलक्ष्य में किया गया। इस वर्ष की थीम मोंट्रियल प्रोटोकॉल 35 @ पृथ्वी पर जीवन रक्षा करने वाला वैष्विक सहयोग है (Montreal Protocol@35: global cooperation protecting life on earth)। सारिका ने जानकारी दी कि एयर कंडीशनर, फ्रिज, आगबुझाने के यंत्र , साल्वेंट्स तथा झाग उत्पन्न करने वाले यंत्रों में प्रयुक्त रसायन उंचाई पर पहुंचकर इस रक्षक परत में छिद्र कर रहा है। इसलिये इनके उपयोग पर रोक लगाने की आवश्यकता है।
*क्यों मनाया जाता है ओजोन दिवस*
सारिका ने बताया कि ओजोन परत संरक्षण के लिये 16 सितम्बर 1987 को कनाडा के मोंट्रियल शहर निर्णय लिया गया कि ओजोन परत को नुकसान पहुचाने वाली गैसों के उत्सर्जन को कम किया जाये। ओजोन के प्रति आम लोगों को जागरूक करने पहली बार 16 सितम्बर 1995 को ओजोन दिवस मनाया गया। वर्तमान में इसमें 196 देश शामिल हैं।